धन

ये बाइबल की वे आयतें हैं जो इस बारे में बात करती हैं धन

व्यवस्थाविवरण 6 : 12
12 तब सावधान रहना, कहीं ऐसा न हो कि तू यहोवा को भूल जाए, जो तुझे दासत्व के घर अर्थात मिस्र देश से निकाल लाया है।

व्यवस्थाविवरण 8 : 18
18 परन्तु तू अपने परमेश्वर यहोवा को स्मरण रखना, क्योंकि वही है जो तुझे सम्पति प्राप्त करने का सामर्थ्य इसलिये देता है, कि जो वाचा उसने तेरे पूर्वजों से शपथ खाकर बान्धी थी उसको पूरा करे, जैसा आज प्रगट है।

व्यवस्थाविवरण 31 : 20
20 जब मैं इन को उस देश में पहुंचाऊंगा जिसे देने की मैं ने इनके पूर्वजों से शपथ खाईं थी, और जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, और खाते-खाते इनका पेट भर जाए, और ये हृष्ट-पुष्ट हो जाएंगे; तब ये पराये देवताओं की ओर फिरकर उनकी उपासना करने लगेंगे, और मेरा तिरस्कार करके मेरी वाचा को तोड़ देंगे।

व्यवस्थाविवरण 32 : 15
15 परन्तु यशूरून मोटा हो कर लात मारने लगा; तू मोटा और हृष्ट-पुष्ट हो गया, और चर्बी से छा गया है; तब उसने अपने सृजनहार ईश्वर को तज दिया, और अपने उद्धारमूल चट्टान को तुच्छ जाना॥

1 शमूएल 2 : 7
7 यहोवा निर्धन करता है और धनी भी बनाता है, वही नीचा करता और ऊंचा भी करता है।

भजन संहिता 37 : 16
16 धर्मी का थोड़ा से माल दुष्टों के बहुत से धन से उत्तम है।

नीतिवचन 10 : 2
2 दुष्टों के रखे हुए धन से लाभ नही होता, परन्तु धर्म के कारण मृत्यु से बचाव होता है।

नीतिवचन 10 : 22
22 धन यहोवा की आशीष ही से मिलता है, और वह उसके साथ दु:ख नहीं मिलाता।

नीतिवचन 11 : 4
4 कोप के दिन धन से तो कुछ लाभ नहीं होता, परन्तु धर्म मृत्यु से भी बचाता है।

नीतिवचन 11 : 28
28 जो अपने धन पर भरोसा रखता है वह गिर जाता है, परन्तु धर्मी लोग नये पत्ते की नाईं लहलहाते हैं।

नीतिवचन 13 : 8
8 प्राण की छुड़ौती मनुष्य का धन है, परन्तु निर्धन घुड़की को सुनता भी नहीं।

नीतिवचन 14 : 24
24 बुद्धिमानों का धन उन का मुकुट ठहरता है, परन्तु मूर्खों की मूढ़ता निरी मूढ़ता है।

नीतिवचन 15 : 6
6 धर्मी के घर में बहुत धन रहता है, परन्तु दुष्ट के उपार्जन में दु:ख रहता है।

नीतिवचन 15 : 17
17 प्रेम वाले घर में साग पात का भोजन, बैर वाले घर में पाले हुए बैल का मांस खाने से उत्तम है।

नीतिवचन 16 : 8
8 अन्याय के बड़े लाभ से, न्याय से थोड़ा ही प्राप्त करना उत्तम है।

नीतिवचन 19 : 4
4 धनी के तो बहुत मित्र हो जाते हैं, परन्तु कंगाल के मित्र उस से अलग हो जाते हैं।

नीतिवचन 21 : 6
6 जो धन झूठ के द्वारा प्राप्त हो, वह वायु से उड़ जाने वाला कोहरा है, उसके ढूंढ़ने वाले मृत्यु ही को ढूंढ़ते हैं।

नीतिवचन 23 : 5
5 क्या तू अपनी दृष्टि उस वस्तु पर लगाएगा, जो है ही नहीं? वह उकाब पक्षी की नाईं पंख लगा कर, नि:सन्देह आकाश की ओर उड़ जाता है।

नीतिवचन 27 : 24
24 क्योंकि सम्पत्ति सदा नहीं ठहरती; और क्या राजमुकुट पीढ़ी-पीढ़ी चला जाता है?

नीतिवचन 28 : 8
8 जो अपना धन ब्याज आदि बढ़ती से बढ़ाता है, वह उसके लिये बटोरता है जो कंगालों पर अनुग्रह करता है।

नीतिवचन 28 : 20
20 सच्चे मनुष्य पर बहुत आशीर्वाद होते रहते हैं, परन्तु जो धनी होने में उतावली करता है, वह निर्दोष नहीं ठहरता।

नीतिवचन 28 : 22
22 लोभी जन धन प्राप्त करने में उतावली करता है, और नहीं जानता कि वह घटी में पड़ेगा।

नीतिवचन 30 : 9
9 ऐसा न हो, कि जब मेरा पेट भर जाए, तब मैं इन्कार कर के कहूं कि यहोवा कौन है? वा अपना भाग खो कर चोरी करूं, और अपने परमेश्वर का नाम अनुचित रीति से लूं।

सभोपदेशक 5 : 20
20 इस जीवन के दिन उसे बहुत स्मरण न रहेंगे, क्योंकि परमेश्वर उसकी सुन सुनकर उसके मन को आनन्दमय रखता है॥

सभोपदेशक 6 : 2
2 किसी मनुष्य को परमेश्वर धन सम्पत्ति और प्रतिष्ठा यहां तक देता है कि जो कुछ उसका मन चाहता है उसे उसकी कुछ भी घटी नहीं होती, तौभी परमेश्वर उसको उस में से खाने नहीं देता, कोई दूसरा की उसे खाता है; यह व्यर्थ और भयानक दु:ख है।

सभोपदेशक 7 : 12
12 क्योंकि बुद्धि की आड़ रूपये की आड़ का काम देता है; परन्तु ज्ञान की श्रेष्टता यह है कि बुद्धि से उसके रखने वालों के प्राण की रक्षा होती है।

सभोपदेशक 10 : 19
19 भोज हंसी खुशी के लिये किया जाता है, और दाखमधु से जीवन को आनन्द मिलता है; और रूपयों से सब कुछ प्राप्त होता है।

यशायाह 5 : 8
8 हाय उन पर जो घर से घर, और खेत से खेत यहां तक मिलाते जाते हैं कि कुछ स्थान नहीं बचता, कि तुम देश के बीच अकेले रह जाओ।

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *