धन उधार देना

ये बाइबल की वे आयतें हैं जो इस बारे में बात करती हैं धन उधार देना

लूका 6 : 34 – 35
34 और यदि तुम उसे उधार दो, जिन से फिर पाने की आशा रखते हो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी पापियों को उधार देते हैं, कि उतना ही फिर पाएं।
35 वरन अपने शत्रुओं से प्रेम रखो, और भलाई करो: और फिर पाने की आस न रखकर उधार दो; और तुम्हारे लिये बड़ा फल होगा; और तुम परमप्रधान के सन्तान ठहरोगे, क्योंकि वह उन पर जो धन्यवाद नहीं करते और बुरों पर भी कृपालु है।

निर्गमन 22 : 25
25 यदि तू मेरी प्रजा में से किसी दीन को जो तेरे पास रहता हो रूपए का ऋण दे, तो उससे महाजन की नाईं ब्याज न लेना।

व्यवस्थाविवरण 23 : 19
19 अपने किसी भाई को ब्याज पर ऋण न देना, चाहे रूपया हो, चाहे भोजन-वस्तु हो, चाहे कोई वस्तु हो जो ब्याज पर दी जाति है, उसे ब्याज न देना।

नीतिवचन 22 : 7
7 धनी, निर्धन लोगों पर प्रभुता करता है, और उधार लेने वाला उधार देने वाले का दास होता है।

नीतिवचन 19 : 17
17 जो कंगाल पर अनुग्रह करता है, वह यहोवा को उधार देता है, और वह अपने इस काम का प्रतिफल पाएगा।

लैव्यवस्था 25 : 35 – 37
35 फिर यदि तेरा कोई भाईबन्धु कंगाल हो जाए, और उसकी दशा तेरे साम्हने तरस योग्य हो जाए, तो तू उसको संभालना; वह परदेशी वा यात्री की नाईं तेरे संग रहे।
36 उससे ब्याज वा बढ़ती न लेना; अपने परमेश्वर का भय मानना; जिस से तेरा भाईबन्धु तेरे संग जीवन निर्वाह कर सके।
37 उसको ब्याज पर रूपया न देना, और न उसको भोजनवस्तु लाभ के लालच से देना।

रोमियो 13 : 8
8 आपस के प्रेम से छोड़ और किसी बात में किसी के कर्जदार न हो; क्योंकि जो दूसरे से प्रेम रखता है, उसी ने व्यवस्था पूरी की है।

व्यवस्थाविवरण 23 : 19 – 20
19 अपने किसी भाई को ब्याज पर ऋण न देना, चाहे रूपया हो, चाहे भोजन-वस्तु हो, चाहे कोई वस्तु हो जो ब्याज पर दी जाति है, उसे ब्याज न देना।
20 तू परदेशी को ब्याज पर ऋण तो दे, परन्तु अपने किसी भाई से ऐसा न करना, ताकि जिस देश का अधिकारी होने को तू जा रहा है, वहां जिस जिस काम में अपना हाथ लगाए, उन सभों को तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे आशीष दे॥

मत्ती 6 : 24
24 कोई मनुष्य दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता, क्योंकि वह एक से बैर ओर दूसरे से प्रेम रखेगा, वा एक से मिला रहेगा और दूसरे को तुच्छ जानेगा; “तुम परमेश्वर और धन दोनो की सेवा नहीं कर सकते”।

भजन संहिता 15 : 5
5 जो अपना रूपया ब्याज पर नहीं देता, और निर्दोष की हानि करने के लिये घूस नहीं लेता है। जो कोई ऐसी चाल चलता है वह कभी न डगमगाएगा॥

भजन संहिता 37 : 21
21 दुष्ट ऋण लेता है, और भरता नहीं परन्तु धर्मीं अनुग्रह करके दान देता है;

लूका 6 : 38
38 दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा: लोग पूरा नाप दबा दबाकर और हिला हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा॥

1 तीमुथियुस 6 : 10
10 क्योंकि रूपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने विश्वास से भटक कर अपने आप को नाना प्रकार के दुखों से छलनी बना लिया है॥

1 तीमुथियुस 6 : 9
9 पर जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा, और फंदे और बहुतेरे व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फंसते हैं, जो मनुष्यों को बिगाड़ देती हैं और विनाश के समुद्र में डूबा देती हैं।

नहेमायाह 5 : 1 – 19
1 तब लोग और उनकी स्त्रियों की ओर से उनके भाई यहूदियों के किरुद्ध बड़ी चिल्लाहट मची।
2 कितने तो कहते थे, हम अपने बेटे-बेटियों समेत बहुत प्राणी हैं, इसलिये हमें अन्न मिलना चाहिये कि उसे खाकर जीवित रहें।
3 और कितने कहते थे, कि हम अपने अपने खेतों, दाख की बारियों और घरों को महंगी के कारण बन्धक रखते हैं, कि हमें अन्न मिले।
4 फिर कितने यह कहते थे, कि हम ने राजा के कर के लिये अपने अपने खेतों और दाख की बारियों पर रुपया उधार लिया।
5 परन्तु हमारा और हमारे भाइयों का शरीर और हमारे और उनके लड़केबाले एक ही समान हैं, तौभी हम अपने बेटे-बेटियों को दास बनाते हैं; वरन हमारी कोई कोई बेटी दासी भी हो चुकी हैं; और हमारा कुछ बस नहीं जलता, क्योंकि हमारे खेत और दाख की बारियां औरों के हाथ पड़ी हैं।
6 यह चिल्लाहट ओर ये बातें सुन कर मैं बहुत क्रोधित हुआ।
7 तब अपने मन में सोच विचार कर के मैं ने रईसों और हाकिमों को घुड़क कर कहा, तुम अपने अपने भाई से ब्याज लेते हो। तब मैं ने उनके विरुद्ध एक बड़ी सभा की।
8 और मैं ने उन से कहा, हम लोगों ने तो अपनी शक्ति भर अपने यहूदी भाइयों को जो अन्यजातियों के हाथ बिक गए थे, दाम देकर छुड़ाया है, फिर क्या तुम अपने भाइयों को बेचोगे? क्या वे हमारे हाथ बिकेंगे? तब वे चुप रहे और कुछ न कह सके।
9 फिर मैं कहता गया, जो काम तुम करते हो वह अच्छा नहीं है; क्या तुम को इस कारण हमारे परमेश्वर का भय मानकर चलना न चाहिये कि हमारे शत्रु जो अन्यजाति हैं, वे हमारी नामधराई न करें?
10 मैं भी और मेरे भाई और सेवक उन को रुपया और अनाज उधार देते हैं, परन्तु हम इसका ब्याज छोड़ दें।
11 आज ही उन को उन के खेत, और दाख, और जलपाई की बारियां, और घर फेर दो; और जो रुपया, अन्न, नया दाखमधु, और टटका तेल तुम उन से ले लेते हो, उसका सौवां भाग फेर दो?
12 उन्होंने कहा, हम उन्हें फेर देंगे, और उन से कुछ न लेंगे; जैसा तू कहता है, वैसा ही हम करेंगे। तब मैं ने याजकों को बुला कर उन लोगों को यह शपथ खिलाई, कि वे इसी वचन के अनुसार करेंगे।
13 फिर मैं ने अपने कपड़े की छोर झाड़ कर कहा, इसी रीति से जो कोई इस वचन को पूरा न करे, उसको परमेश्वर झाड़ कर, उसका घर और कमाई उस से छुड़ाए, और इसी रीति से वह झाड़ा जाए, और छूछा हो जाए। तब सारी सभा ने कहा, आमेन! और यहोवा की स्तुति की। और लोगों ने इस वचन के अनुसार काम किया।
14 फिर जब से मैं यहूदा देश में उनका अधिपति ठहराया गया, अर्थात राजा अर्तक्षत्र के बीसवें वर्ष से ले उसके बत्तीसवें वर्ष तक, अर्थात बारह वर्ष तक मैं और मेरे भाई अधिपति के हक का भोजन खाते रहे।
15 परन्तु पहिले अधिपति जो मुझ से आगे थे, वह प्रजा पर भार डालते थे, और उन से रोटी, और दाखमधु, और इस से अधिक चालीस शेकेल चान्दी लेते थे, वरन उनके सेवक भी प्रजा के ऊपर अधिकार जताते थे; परन्तु मैं ऐसा नहीं करता था, क्योंकि मैं यहोवा का भय मानता था।
16 फिर मैं शहरपनाह के काम में लिपटा रहा, और हम लोगों ने कुछ भूमि मोल न ली; और मेरे सब सेवक काम करने के लिये वहां इकट्ठे रहते थे।
17 फिर मेरी मेज पर खाने वाले एक सौ पचास यहूदी और हाकिम और वे भी थे, जो चारों ओर की अन्यजातियों में से हमारे पास आए थे।
18 और जो प्रतिदिन के लिये तैयार किया जाता था वह एक बैल, छ: अच्छी अच्छी भेड़ें व बकरियां थीं, और मेरे लिये चिड़ियें भी तैयार की जाती थीं; दस दस दिन के बाद भांति भांति का बहुत दाखमधु भी तैयार किया जाता था; परन्तु तौभी मैं ने अधिपति के हक का भोज नहीं लिया,
19 क्योंकि काम का भार प्रजा पर भारी था। हे मेरे परमेश्वर! जो कुछ मैं ने इस प्रजा के लिये किया है, उसे तू मेरे हित के लिये स्मरण रख।

मत्ती 6 : 19
19 अपने लिये पृथ्वी पर धन इकट्ठा न करो; जहां कीड़ा और काई बिगाड़ते हैं, और जहां चोर सेंध लगाते और चुराते हैं।

नहेमायाह 5 : 10
10 मैं भी और मेरे भाई और सेवक उन को रुपया और अनाज उधार देते हैं, परन्तु हम इसका ब्याज छोड़ दें।

लूका 16 : 10
10 जो थोड़े से थोड़े में सच्चा है, वह बहुत में भी सच्चा है: और जो थोड़े से थोड़े में अधर्मी है, वह बहुत में भी अधर्मी है।

1 कुरिन्थियों 2 : 1 – 16
1 और हे भाइयों, जब मैं परमेश्वर का भेद सुनाता हुआ तुम्हारे पास आया, तो वचन या ज्ञान की उत्तमता के साथ नहीं आया।
2 क्योंकि मैं ने यह ठान लिया था, कि तुम्हारे बीच यीशु मसीह, वरन क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह को छोड़ और किसी बात को न जानूं।
3 और मैं निर्बलता और भय के साथ, और बहुत थरथराता हुआ तुम्हारे साथ रहा।
4 और मेरे वचन, और मेरे प्रचार में ज्ञान की लुभाने वाली बातें नहीं; परन्तु आत्मा और सामर्थ का प्रमाण था।
5 इसलिये कि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्थ पर निर्भर हो॥
6 फिर भी सिद्ध लोगों में हम ज्ञान सुनाते हैं: परन्तु इस संसार का और इस संसार के नाश होने वाले हाकिमों का ज्ञान नहीं।
7 परन्तु हम परमेश्वर का वह गुप्त ज्ञान, भेद की रीति पर बताते हैं, जिसे परमेश्वर ने सनातन से हमारी महिमा के लिये ठहराया।
8 जिसे इस संसार के हाकिमों में से किसी ने नहीं जाना, क्योंकि यदि जानते, तो तेजोमय प्रभु को क्रूस पर न चढ़ाते।
9 परन्तु जैसा लिखा है, कि जो आंख ने नहीं देखी, और कान ने नहीं सुना, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ीं वे ही हैं, जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखने वालों के लिये तैयार की हैं।
10 परन्तु परमेश्वर ने उन को अपने आत्मा के द्वारा हम पर प्रगट किया; क्योंकि आत्मा सब बातें, वरन परमेश्वर की गूढ़ बातें भी जांचता है।
11 मनुष्यों में से कौन किसी मनुष्य की बातें जानता है, केवल मनुष्य की आत्मा जो उस में है? वैसे ही परमेश्वर की बातें भी कोई नहीं जानता, केवल परमेश्वर का आत्मा।
12 परन्तु हम ने संसार की आत्मा नहीं, परन्तु वह आत्मा पाया है, जो परमेश्वर की ओर से है, कि हम उन बातों को जानें, जो परमेश्वर ने हमें दी हैं।
13 जिन को हम मनुष्यों के ज्ञान की सिखाई हुई बातों में नहीं, परन्तु आत्मा की सिखाई हुई बातों में, आत्मिक बातें आत्मिक बातों से मिला मिला कर सुनाते हैं।
14 परन्तु शारीरिक मनुष्य परमेश्वर के आत्मा की बातें ग्रहण नहीं करता, क्योंकि वे उस की दृष्टि में मूर्खता की बातें हैं, और न वह उन्हें जान सकता है क्योंकि उन की जांच आत्मिक रीति से होती है।
15 आत्मिक जन सब कुछ जांचता है, परन्तु वह आप किसी से जांचा नहीं जाता।
16 क्योंकि प्रभु का मन किस ने जाना है, कि उसे सिखलाए? परन्तु हम में मसीह का मन है॥

नहेमायाह 5 : 1 – 232

1 तब लोग और उनकी स्त्रियों की ओर से उनके भाई यहूदियों के किरुद्ध बड़ी चिल्लाहट मची।
2 कितने तो कहते थे, हम अपने बेटे-बेटियों समेत बहुत प्राणी हैं, इसलिये हमें अन्न मिलना चाहिये कि उसे खाकर जीवित रहें।
3 और कितने कहते थे, कि हम अपने अपने खेतों, दाख की बारियों और घरों को महंगी के कारण बन्धक रखते हैं, कि हमें अन्न मिले।
4 फिर कितने यह कहते थे, कि हम ने राजा के कर के लिये अपने अपने खेतों और दाख की बारियों पर रुपया उधार लिया।
5 परन्तु हमारा और हमारे भाइयों का शरीर और हमारे और उनके लड़केबाले एक ही समान हैं, तौभी हम अपने बेटे-बेटियों को दास बनाते हैं; वरन हमारी कोई कोई बेटी दासी भी हो चुकी हैं; और हमारा कुछ बस नहीं जलता, क्योंकि हमारे खेत और दाख की बारियां औरों के हाथ पड़ी हैं।
6 यह चिल्लाहट ओर ये बातें सुन कर मैं बहुत क्रोधित हुआ।
7 तब अपने मन में सोच विचार कर के मैं ने रईसों और हाकिमों को घुड़क कर कहा, तुम अपने अपने भाई से ब्याज लेते हो। तब मैं ने उनके विरुद्ध एक बड़ी सभा की।
8 और मैं ने उन से कहा, हम लोगों ने तो अपनी शक्ति भर अपने यहूदी भाइयों को जो अन्यजातियों के हाथ बिक गए थे, दाम देकर छुड़ाया है, फिर क्या तुम अपने भाइयों को बेचोगे? क्या वे हमारे हाथ बिकेंगे? तब वे चुप रहे और कुछ न कह सके।
9 फिर मैं कहता गया, जो काम तुम करते हो वह अच्छा नहीं है; क्या तुम को इस कारण हमारे परमेश्वर का भय मानकर चलना न चाहिये कि हमारे शत्रु जो अन्यजाति हैं, वे हमारी नामधराई न करें?
10 मैं भी और मेरे भाई और सेवक उन को रुपया और अनाज उधार देते हैं, परन्तु हम इसका ब्याज छोड़ दें।
11 आज ही उन को उन के खेत, और दाख, और जलपाई की बारियां, और घर फेर दो; और जो रुपया, अन्न, नया दाखमधु, और टटका तेल तुम उन से ले लेते हो, उसका सौवां भाग फेर दो?
12 उन्होंने कहा, हम उन्हें फेर देंगे, और उन से कुछ न लेंगे; जैसा तू कहता है, वैसा ही हम करेंगे। तब मैं ने याजकों को बुला कर उन लोगों को यह शपथ खिलाई, कि वे इसी वचन के अनुसार करेंगे।
13 फिर मैं ने अपने कपड़े की छोर झाड़ कर कहा, इसी रीति से जो कोई इस वचन को पूरा न करे, उसको परमेश्वर झाड़ कर, उसका घर और कमाई उस से छुड़ाए, और इसी रीति से वह झाड़ा जाए, और छूछा हो जाए। तब सारी सभा ने कहा, आमेन! और यहोवा की स्तुति की। और लोगों ने इस वचन के अनुसार काम किया।
14 फिर जब से मैं यहूदा देश में उनका अधिपति ठहराया गया, अर्थात राजा अर्तक्षत्र के बीसवें वर्ष से ले उसके बत्तीसवें वर्ष तक, अर्थात बारह वर्ष तक मैं और मेरे भाई अधिपति के हक का भोजन खाते रहे।
15 परन्तु पहिले अधिपति जो मुझ से आगे थे, वह प्रजा पर भार डालते थे, और उन से रोटी, और दाखमधु, और इस से अधिक चालीस शेकेल चान्दी लेते थे, वरन उनके सेवक भी प्रजा के ऊपर अधिकार जताते थे; परन्तु मैं ऐसा नहीं करता था, क्योंकि मैं यहोवा का भय मानता था।
16 फिर मैं शहरपनाह के काम में लिपटा रहा, और हम लोगों ने कुछ भूमि मोल न ली; और मेरे सब सेवक काम करने के लिये वहां इकट्ठे रहते थे।
17 फिर मेरी मेज पर खाने वाले एक सौ पचास यहूदी और हाकिम और वे भी थे, जो चारों ओर की अन्यजातियों में से हमारे पास आए थे।
18 और जो प्रतिदिन के लिये तैयार किया जाता था वह एक बैल, छ: अच्छी अच्छी भेड़ें व बकरियां थीं, और मेरे लिये चिड़ियें भी तैयार की जाती थीं; दस दस दिन के बाद भांति भांति का बहुत दाखमधु भी तैयार किया जाता था; परन्तु तौभी मैं ने अधिपति के हक का भोज नहीं लिया,
19 क्योंकि काम का भार प्रजा पर भारी था। हे मेरे परमेश्वर! जो कुछ मैं ने इस प्रजा के लिये किया है, उसे तू मेरे हित के लिये स्मरण रख।

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