पांच इंद्रियां

ये बाइबल की वे आयतें हैं जो इस बारे में बात करती हैं पांच इंद्रियां

भजन संहिता 34 : 8
8 परखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है! क्या ही धन्य है वह पुरूष जो उसकी शरण लेता है।

1 यूहन्ना 1 : 1 – 4
1 उस जीवन के वचन के विषय में जो आदि से था, जिसे हम ने सुना, और जिसे अपनी आंखों से देखा, वरन जिसे हम ने ध्यान से देखा; और हाथों से छूआ।
2 (यह जीवन प्रगट हुआ, और हम ने उसे देखा, और उस की गवाही देते हैं, और तुम्हें उस अनन्त जीवन का समाचार देते हैं, जो पिता के साथ था, और हम पर प्रगट हुआ)।
3 जो कुछ हम ने देखा और सुना है उसका समाचार तुम्हें भी देते हैं, इसलिये कि तुम भी हमारे साथ सहभागी हो; और हमारी यह सहभागिता पिता के साथ, और उसके पुत्र यीशु मसीह के साथ है।
4 और ये बातें हम इसलिये लिखते हैं, कि हमारा आनन्द पूरा हो जाए॥

नीतिवचन 20 : 12
12 सुनने के लिये कान और देखने के लिये जो आंखें हैं, उन दोनों को यहोवा ने बनाया है।

मत्ती 5 : 13
13 तुम पृथ्वी के नमक हो; परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा? फिर वह किसी काम का नहीं, केवल इस के कि बाहर फेंका जाए और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाए।

भजन संहिता 94 : 9
9 जिसने कान दिया, क्या वह आप नहीं सुनता? जिसने आंख रची, क्या वह आप नहीं देखता?

निर्गमन 20 : 8
8 तू विश्रामदिन को पवित्र मानने के लिये स्मरण रखना।

यशायाह 66 : 8
8 ऐसी बात किस ने कभी सुनी? किस ने कभी ऐसी बातें देखी? क्या देश एक ही दिन में उत्पन्न हो सकता है? क्या एक जाति क्षण मात्र में ही उत्पन्न हो सकती है? क्योंकि सिय्योन की पीड़ाएं उठी ही थीं कि उस से सन्तान उत्पन्न हो गए।

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