ये बाइबल की वे आयतें हैं जो इस बारे में बात करती हैं जिन्होंने तुम्हें दुख पहुँचाया उन्हें क्षमा कर दो
मत्ती 6 : 14 – 15
14 इसलिये यदि तुम मनुष्य के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा।
15 और यदि तुम मनुष्यों के अपराध क्षमा न करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा न करेगा॥
भजन संहिता 34 : 17 – 20
17 धर्मी दोहाई देते हैं और यहोवा सुनता है, और उन को सब विपत्तियों से छुड़ाता है।
18 यहोवा टूटे मन वालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है॥
19 धर्मी पर बहुत सी विपत्तियां पड़ती तो हैं, परन्तु यहोवा उसको उन सब से मुक्त करता है।
20 वह उसकी हड्डी हड्डी की रक्षा करता है; और उन में से एक भी टूटने नहीं पाती।
लूका 6 : 27
27 परन्तु मैं तुम सुनने वालों से कहता हूं, कि अपने शत्रुओं से प्रेम रखो; जो तुम से बैर करें, उन का भला करो।
मरकुस 11 : 25
25 और जब कभी तुम खड़े हुए प्रार्थना करते हो, तो यदि तुम्हारे मन में किसी की ओर से कुछ विरोध, हो तो क्षमा करो: इसलिये कि तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा करे॥
मत्ती 18 : 15
15 यदि तेरा भाई तेरा अपराध करे, तो जा और अकेले में बातचीत करके उसे समझा; यदि वह तेरी सुने तो तू ने अपने भाई को पा लिया।
1 कुरिन्थियों 13 : 4 – 7
4 प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
5 वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।
6 कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है।
7 वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।
याकूब 4 : 12
12 व्यवस्था देने वाला और हाकिम तो एक ही है, जिसे बचाने और नाश करने की सामर्थ है; तू कौन है, जो अपने पड़ोसी पर दोष लगाता है?
1 यूहन्ना 2 : 11
11 पर जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह अन्धकार में है, और अन्धकार में चलता है; और नहीं जानता, कि कहां जाता है, क्योंकि अन्धकार ने उस की आंखे अन्धी कर दी हैं॥
कुलुस्सियों 3 : 12 – 15
12 इसलिये परमेश्वर के चुने हुओं की नाईं जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करूणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो।
13 और यदि किसी को किसी पर दोष देने को कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो।
14 और इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबन्ध है बान्ध लो।
15 और मसीह की शान्ति जिस के लिये तुम एक देह होकर बुलाए भी गए हो, तुम्हारे हृदय में राज्य करे, और तुम धन्यवादी बने रहो।
1 यूहन्ना 1 : 9
9 यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है।
2 कुरिन्थियों 2 : 7 – 11
7 इसलिये इस से यह भला है कि उसका अपराध क्षमा करो; और शान्ति दो, न हो कि ऐसा मनुष्य उदासी में डूब जाए।
8 इस कारण मैं तुम से बिनती करता हूं, कि उस को अपने प्रेम का प्रमाण दो।
9 क्योंकि मैं ने इसलिये भी लिखा था, कि तुम्हें परख लूं, कि सब बातों के मानने के लिये तैयार हो, कि नहीं।
10 जिस का तुम कुछ क्षमा करते हो उस मैं भी क्षमा करता हूं, क्योंकि मैं ने भी जो कुछ क्षमा किया है, यदि किया हो, तो तुम्हारे कारण मसीह की जगह में होकर क्षमा किया है।
11 कि शैतान का हम पर दांव न चले, क्योंकि हम उस की युक्तियों से अनजान नहीं।
मत्ती 5 : 43 – 48
43 तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था; कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर।
44 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सताने वालों के लिये प्रार्थना करो।
45 जिस से तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनो पर अपना सूर्य उदय करता है, और धमिर्यों और अधमिर्यों दोनों पर मेंह बरसाता है।
46 क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखने वालों ही से प्रेम रखो, तो तुम्हारे लिये क्या फल होगा? क्या महसूल लेने वाले भी ऐसा ही नहीं करते?
47 और यदि तुम केवल अपने भाइयों ही को नमस्कार करो, तो कौन सा बड़ा काम करते हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा नहीं करते?
48 इसलिये चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है॥
इफिसियों 4 : 26 – 27
26 क्रोध तो करो, पर पाप मत करो: सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे।
27 और न शैतान को अवसर दो।
मत्ती 18 : 21 – 22
21 तब पतरस ने पास आकर, उस से कहा, हे प्रभु, यदि मेरा भाई अपराध करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूं, क्या सात बार तक?
22 यीशु ने उस से कहा, मैं तुझ से यह नहीं कहता, कि सात बार, वरन सात बार के सत्तर गुने तक।
प्रकाशित वाक्य 2 : 10
10 जो दु:ख तुझ को झेलने होंगे, उन से मत डर: क्योंकि देखो, शैतान तुम में से कितनों को जेलखाने में डालने पर है ताकि तुम परखे जाओ; और तुम्हें दस दिन तक क्लेश उठाना होगा: प्राण देने तक विश्वासी रह; तो मैं तुझे जीवन का मुकुट दूंगा।
कुलुस्सियों 3 : 15
15 और मसीह की शान्ति जिस के लिये तुम एक देह होकर बुलाए भी गए हो, तुम्हारे हृदय में राज्य करे, और तुम धन्यवादी बने रहो।
2 यूहन्ना 1 : 9 – 11
9 जो कोई आगे बढ़ जाता है, और मसीह की शिक्षा में बना नहीं रहता, उसके पास परमेश्वर नहीं: जो कोई उस की शिक्षा में स्थिर रहता है, उसके पास पिता भी है, और पुत्र भी।
10 यदि कोई तुम्हारे पास आए, और यही शिक्षा न दे, उसे न तो घर मे आने दो, और न नमस्कार करो।
11 क्योंकि जो कोई ऐसे जन को नमस्कार करता है, वह उस के बुरे कामों में साझी होता है॥
यूहन्ना 14 : 27
27 मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूं, अपनी शान्ति तुम्हें देता हूं; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे।
1 कुरिन्थियों 13 : 1 – 168
1 यदि मैं मनुष्यों, और सवर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं।
2 और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं।
3 और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूं, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं।
4 प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
5 वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।
6 कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है।
7 वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।
8 प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा।
9 क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी।
10 परन्तु जब सवर्सिद्ध आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा।
11 जब मैं बालक था, तो मैं बालकों की नाईं बोलता था, बालकों का सा मन था बालकों की सी समझ थी; परन्तु सियाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दी।
12 अब हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने साम्हने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है; परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहिचानूंगा, जैसा मैं पहिचाना गया हूं।
13 पर अब विश्वास, आशा, प्रेम थे तीनों स्थाई है, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।
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