ये बाइबल की वे आयतें हैं जो इस बारे में बात करती हैं केवल भगवान जज कर सकते हैं
लूका 6 : 37
37 दोष मत लगाओ; तो तुम पर भी दोष नहीं लगाया जाएगा: दोषी न ठहराओ, तो तुम भी दोषी नहीं ठहराए जाओगे: क्षमा करो, तो तुम्हारी भी क्षमा की जाएगी।
मत्ती 7 : 1 – 5
1 दोष मत लगाओ, कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए।
2 क्योंकि जिस प्रकार तुम दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा; और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।
3 तू क्यों अपने भाई की आंख के तिनके को देखता है, और अपनी आंख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता?।
4 और जब तेरी ही आंख मे लट्ठा है, तो तू अपने भाई से क्योंकर कह सकता है, कि ला मैं तेरी आंख से तिनका निकाल दूं।
5 हे कपटी, पहले अपनी आंख में से लट्ठा निकाल ले, तब तू अपने भाई की आंख का तिनका भली भांति देखकर निकाल सकेगा॥
रोमियो 14 : 1 – 23
1 जो विश्वास में निर्बल है, उसे अपनी संगति में ले लो; परन्तु उसी शंकाओं पर विवाद करने के लिये नहीं।
2 क्योंकि एक को विश्वास है, कि सब कुछ खाना उचित है, परन्तु जो विश्वास में निर्बल है, वह साग पात ही खाता है।
3 और खानेवाला न-खाने वाले को तुच्छ न जाने, और न-खानेवाला खाने वाले पर दोष न लगाए; क्योंकि परमेश्वर ने उसे ग्रहण किया है।
4 तू कौन है जो दूसरे के सेवक पर दोष लगाता है? उसका स्थिर रहना या गिर जाना उसके स्वामी ही से सम्बन्ध रखता है, वरन वह स्थिर ही कर दिया जाएगा; क्योंकि प्रभु उसे स्थिर रख सकता है।
5 कोई तो एक दिन को दूसरे से बढ़कर जानता है, और कोई सब दिन एक सा जानता है: हर एक अपने ही मन में निश्चय कर ले।
6 जो किसी दिन को मानता है, वह प्रभु के लिये मानता है: जो खाता है, वह प्रभु के लिये खाता है, क्योंकि वह परमेश्वर का धन्यवाद करता है, और जा नहीं खाता, वह प्रभु के लिये नहीं खाता और परमेश्वर का धन्यवाद करता है।
7 क्योंकि हम में से न तो कोई अपने लिये जीता है, और न कोई अपने लिये मरता है।
8 क्योंकि यदि हम जीवित हैं, तो प्रभु के लिये जीवित हैं; और यदि मरते हैं, तो प्रभु के लिये मरते हैं; सो हम जीएं या मरें, हम प्रभु ही के हैं।
9 क्योंकि मसीह इसी लिये मरा और जी भी उठा कि वह मरे हुओं और जीवतों, दोनों का प्रभु हो।
10 तू अपने भाई पर क्यों दोष लगाता है? या तू फिर क्यों अपने भाई को तुच्छ जानता है? हम सब के सब परमेश्वर के न्याय सिंहासन के साम्हने खड़े होंगे।
11 क्योंकि लिखा है, कि प्रभु कहता है, मेरे जीवन की सौगन्ध कि हर एक घुटना मेरे साम्हने टिकेगा, और हर एक जीभ परमेश्वर को अंगीकार करेगी।
12 सो हम में से हर एक परमेश्वर को अपना अपना लेखा देगा॥
13 सो आगे को हम एक दूसरे पर दोष न लगाएं पर तुम यही ठान लो कि कोई अपने भाई के साम्हने ठेस या ठोकर खाने का कारण न रखे।
14 मैं जानता हूं, और प्रभु यीशु से मुझे निश्चय हुआ है, कि कोई वस्तु अपने आप से अशुद्ध नहीं, परन्तु जो उस को अशुद्ध समझता है, उसके लिये अशुद्ध है।
15 यदि तेरा भाई तेरे भोजन के कारण उदास होता है, तो फिर तू प्रेम की रीति से नहीं चलता: जिस के लिये मसीह मरा उस को तू अपने भोजन के द्वारा नाश न कर।
16 अब तुम्हारी भलाई की निन्दा न होने पाए।
17 क्योंकि परमेश्वर का राज्य खाना पीना नहीं; परन्तु धर्म और मिलाप और वह आनन्द है;
18 जो पवित्र आत्मा से होता है और जो कोई इस रीति से मसीह की सेवा करता है, वह परमेश्वर को भाता है और मनुष्यों में ग्रहण योग्य ठहरता है।
19 इसलिये हम उन बातों का प्रयत्न करें जिनसे मेल मिलाप और एक दूसरे का सुधार हो।
20 भोजन के लिये परमेश्वर का काम न बिगाड़: सब कुछ शुद्ध तो है, परन्तु उस मनुष्य के लिये बुरा है, जिस को उस के भोजन करने से ठोकर लगती है।
21 भला तो यह है, कि तू न मांस खाए, और न दाख रस पीए, न और कुछ ऐसा करे, जिस से तेरा भाई ठोकर खाए।
22 तेरा जो विश्वास हो, उसे परमेश्वर के साम्हने अपने ही मन में रख: धन्य है वह, जो उस बात में, जिस वह ठीक समझता है, अपने आप को दोषी नहीं ठहराता।
23 परन्तु जो सन्देह कर के खाता है, वह दण्ड के योग्य ठहर चुका, क्योंकि वह निश्चय धारणा से नहीं खाता, और जो कुछ विश्वास से नहीं, वह पाप है॥
मत्ती 7 : 1 – 2
1 दोष मत लगाओ, कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए।
2 क्योंकि जिस प्रकार तुम दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा; और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।
1 कुरिन्थियों 4 : 1 – 21
1 मनुष्य हमें मसीह के सेवक और परमेश्वर के भेदों के भण्डारी समझे।
2 फिर यहां भण्डारी में यह बात देखी जाती है, कि विश्वास योग्य निकले।
3 परन्तु मेरी दृष्टि में यह बहुत छोटी बात है, कि तुम या मनुष्यों का कोई न्यायी मुझे परखे, वरन मैं आप ही अपने आप को नहीं परखता।
4 क्योंकि मेरा मन मुझे किसी बात में दोषी नहीं ठहराता, परन्तु इस से मैं निर्दोष नहीं ठहरता, क्योंकि मेरा परखने वाला प्रभु है।
5 सो जब तक प्रभु न आए, समय से पहिले किसी बात का न्याय न करो: वही तो अन्धकार की छिपी बातें ज्योति में दिखाएगा, और मनों की मतियों को प्रगट करेगा, तब परमेश्वर की ओर से हर एक की प्रशंसा होगी॥
6 हे भाइयों, मैं ने इन बातों में तुम्हारे लिये अपनी और अपुल्लोस की चर्चा, दृष्टान्त की रीति पर की है, इसलिये कि तुम हमारे द्वारा यह सीखो, कि लिखे हुए से आगे न बढ़ना, और एक के पक्ष में और दूसरे के विरोध में गर्व न करना।
7 क्योंकि तुझ में और दूसरे में कौन भेद करता है? और तेरे पास क्या है जो तू ने (दूसरे से) नहीं पाया: और जब कि तु ने (दूसरे से) पाया है, तो ऐसा घमण्ड क्यों करता है, कि मानों नही पाया?
8 तुम तो तृप्त हो चुके; तुम धनी हो चुके, तुम ने हमारे बिना राज्य किया; परन्तु भला होता कि तुम राज्य करते कि हम भी तुम्हारे साथ राज्य करते।
9 मेरी समझ में परमेश्वर ने हम प्रेरितों को सब के बाद उन लोगों की नाईं ठहराया है, जिन की मृत्यु की आज्ञा हो चुकी हो; क्योंकि हम जगत और स्वर्गदूतों और मनुष्यों के लिये एक तमाशा ठहरे हैं।
10 हम मसीह के लिये मूर्ख है; परन्तु तुम मसीह में बुद्धिमान हो: हम निर्बल हैं परन्तु तुम बलवान हो: तुम आदर पाते हो, परन्तु हम निरादर होते हैं।
11 हम इस घड़ी तक भूखे-प्यासे और नंगे हैं, और घूंसे खाते हैं और मारे मारे फिरते हैं;
12 और अपने ही हाथों से काम करके परिश्रम करते हैं। लोग बुरा कहते हैं, हम आशीष देते हैं; वे सताते हैं, हम सहते हैं।
13 वे बदनाम करते हैं, हम बिनती करते हैं: हम आज तक जगत के कूड़े और सब वस्तुओं की खुरचन की नाईं ठहरे हैं॥
14 मैं तुम्हें लज्ज़ित करने के लिये ये बातें नहीं लिखता, परन्तु अपने प्रिय बालक जानकर उन्हें चिताता हूं।
15 क्योंकि यदि मसीह में तुम्हारे सिखाने वाले दस हजार भी होते, तौभी तुम्हारे पिता बहुत से नहीं, इसलिये कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा मैं तुम्हारा पिता हुआ।
16 सो मैं तुम से बिनती करता हूं, कि मेरी सी चाल चलो।
17 इसलिये मैं ने तीमुथियुस को जो प्रभु में मेरा प्रिय और विश्वासयोग्य पुत्र है, तुम्हारे पास भेजा है, और वह तुम्हें मसीह में मेरा चरित्र स्मरण कराएगा, जैसे कि मैं हर जगह हर एक कलीसिया में उपदेश करता हूं।
18 कितने तो ऐसे फूल गए हैं, मानों मैं तुम्हारे पास आने ही का नहीं।
19 परन्तु प्रभु चाहे तो मैं तुम्हारे पास शीघ्र ही आऊंगा, और उन फूले हुओं की बातों को नहीं, परन्तु उन की सामर्थ को जान लूंगा।
20 क्योंकि परमेश्वर का राज्य बातों में नहीं, परन्तु सामर्थ में है।
21 तुम क्या चाहते हो क्या मैं छड़ी लेकर तुम्हारे पास आऊं या प्रेम और नम्रता की आत्मा के साथ?
यूहन्ना 8 : 7
7 जब वे उस से पूछते रहे, तो उस ने सीधे होकर उन से कहा, कि तुम में जो निष्पाप हो, वही पहिले उस को पत्थर मारे।
प्रकाशित वाक्य 20 : 12
12 फिर मैं ने छोटे बड़े सब मरे हुओं को सिंहासन के साम्हने खड़े हुए देखा, और पुस्तकें खोली गई; और फिर एक और पुस्तक खोली गई; और फिर एक और पुस्तक खोली गई, अर्थात जीवन की पुस्तक; और जैसे उन पुस्तकों में लिखा हुआ था, उन के कामों के अनुसार मरे हुओं का न्याय किया गया।
मत्ती 7 : 1
1 दोष मत लगाओ, कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए।
2 तीमुथियुस 4 : 3 – 4
3 क्योंकि ऐसा समय आएगा, कि लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे पर कानों की खुजली के कारण अपनी अभिलाषाओं के अनुसार अपने लिये बहुतेरे उपदेशक बटोर लेंगे।
4 और अपने कान सत्य से फेरकर कथा-कहानियों पर लगाएंगे।
तीतुस 3 : 10
10 किसी पाखंडी को एक दो बार समझा बुझाकर उस से अलग रह।
1 कुरिन्थियों 11 : 31
31 यदि हम अपने आप में जांचते, तो दण्ड न पाते।
मत्ती 5 : 22
22 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि जो कोई अपने भाई पर क्रोध करेगा, वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा: और जो कोई अपने भाई को निकम्मा कहेगा वह महासभा में दण्ड के योग्य होगा; और जो कोई कहे “अरे मूर्ख” वह नरक की आग के दण्ड के योग्य होगा।
नीतिवचन 21 : 1 – 3
1 राजा का मन नालियों के जल की नाईं यहोवा के हाथ में रहता है, जिधर वह चाहता उधर उस को फेर देता है।
2 मनुष्य का सारा चाल चलन अपनी दृष्टि में तो ठीक होता है, परन्तु यहोवा मन को जांचता है,
3 धर्म और न्याय करना, यहोवा को बलिदान से अधिक अच्छा लगता है।
1 पतरस 5 : 8
8 सचेत हो, और जागते रहो, क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जने वाले सिंह की नाईं इस खोज में रहता है, कि किस को फाड़ खाए।
2 पतरस 2 : 9
9 तो प्रभु के भक्तों को परीक्षा में से निकाल लेना और अधमिर्यों को न्याय के दिन तक दण्ड की दशा में रखना भी जानता है।
गलातियों 6 : 1
1 हे भाइयों, यदि कोई मनुष्य किसी अपराध में पकड़ा भी जाए, तो तुम जो आत्मिक हो, नम्रता के साथ ऐसे को संभालो, और अपनी भी चौकसी रखो, कि तुम भी परीक्षा में न पड़ो।
1 यूहन्ना 3 : 16
16 हम ने प्रेम इसी से जाना, कि उस ने हमारे लिये अपने प्राण दे दिए; और हमें भी भाइयों के लिये प्राण देना चाहिए।
कुलुस्सियों 2 : 8
8 चौकस रहो कि कोई तुम्हें उस तत्व-ज्ञान और व्यर्थ धोखे के द्वारा अहेर न करे ले, जो मनुष्यों के परम्पराई मत और संसार की आदि शिक्षा के अनुसार हैं, पर मसीह के अनुसार नहीं।
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