ये बाइबल की वे आयतें हैं जो इस बारे में बात करती हैं एक दूसरे को जवाबदेह ठहराना
नीतिवचन 27 : 17
17 जैसे लोहा लोहे को चमका देता है, वैसे ही मनुष्य का मुख अपने मित्र की संगति से चमकदार हो जाता है।
गलातियों 6 : 1 – 2
1 हे भाइयों, यदि कोई मनुष्य किसी अपराध में पकड़ा भी जाए, तो तुम जो आत्मिक हो, नम्रता के साथ ऐसे को संभालो, और अपनी भी चौकसी रखो, कि तुम भी परीक्षा में न पड़ो।
2 तुम एक दूसरे के भार उठाओ, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो।
मत्ती 18 : 15 – 17
15 यदि तेरा भाई तेरा अपराध करे, तो जा और अकेले में बातचीत करके उसे समझा; यदि वह तेरी सुने तो तू ने अपने भाई को पा लिया।
16 और यदि वह न सुने, तो और एक दो जन को अपने साथ ले जा, कि हर एक बात दो या तीन गवाहों के मुंह से ठहराई जाए।
17 यदि वह उन की भी न माने, तो कलीसिया से कह दे, परन्तु यदि वह कलीसिया की भी न माने, तो तू उसे अन्य जाति और महसूल लेने वाले के ऐसा जान।
याकूब 5 : 16
16 इसलिये तुम आपस में एक दूसरे के साम्हने अपने अपने पापों को मान लो; और एक दूसरे के लिये प्रार्थना करो, जिस से चंगे हो जाओ; धर्मी जन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है।
सभोपदेशक 4 : 9 – 12
9 एक से दो अच्छे हैं, क्योंकि उनके परिश्रम का अच्छा फल मिलता है।
10 क्योंकि यदि उन में से एक गिरे, तो दूसरा उसको उठाएगा; परन्तु हाय उस पर जो अकेला हो कर गिरे और उसका कोई उठाने वाला न हो।
11 फिर यदि दो जन एक संग सोए तो वे गर्म रहेंगे, परन्तु कोई अकेला क्योंकर गर्म हो सकता है?
12 यदि कोई अकेले पर प्रबल हो तो हो, परन्तु दो उसका साम्हना कर सकेंगे। जो डोरी तीन तागे से बटी हो वह जल्दी नहीं टूटती॥
याकूब 5 : 19 – 20
19 हे मेरे भाइयों, यदि तुम में कोई सत्य के मार्ग से भटक जाए, और कोई उस को फेर लाए।
20 तो वह यह जान ले, कि जो कोई किसी भटके हुए पापी को फेर लाएगा, वह एक प्राण को मृत्यु से बचाएगा, और अनेक पापों पर परदा डालेगा॥
इब्रानियों 10 : 25
25 और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना ने छोड़ें, जैसे कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें; और ज्यों ज्यों उस दिन को निकट आते देखो, त्यों त्यों और भी अधिक यह किया करो॥
इफिसियों 4 : 25
25 इस कारण झूठ बोलना छोड़कर हर एक अपने पड़ोसी से सच बोले, क्योंकि हम आपस में एक दूसरे के अंग हैं।
कुलुस्सियों 3 : 16
16 मसीह के वचन को अपने हृदय में अधिकाई से बसने दो; और सिद्ध ज्ञान सहित एक दूसरे को सिखाओ, और चिताओ, और अपने अपने मन में अनुग्रह के साथ परमेश्वर के लिये भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाओ।
गलातियों 6 : 2
2 तुम एक दूसरे के भार उठाओ, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो।
इफिसियों 4 : 32
32 और एक दूसरे पर कृपाल, और करूणामय हो, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो॥
इफिसियों 4 : 1 – 32
1 सो मैं जो प्रभु में बन्धुआ हूं तुम से बिनती करता हूं, कि जिस बुलाहट से तुम बुलाए गए थे, उसके योग्य चाल चलो।
2 अर्थात सारी दीनता और नम्रता सहित, और धीरज धरकर प्रेम से एक दूसरे की सह लो।
3 और मेल के बन्ध में आत्मा की एकता रखने का यत्न करो।
4 एक ही देह है, और एक ही आत्मा; जैसे तुम्हें जो बुलाए गए थे अपने बुलाए जाने से एक ही आशा है।
5 एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास, एक ही बपतिस्मा।
6 और सब का एक ही परमेश्वर और पिता है, जो सब के ऊपरऔर सब के मध्य में, और सब में है।
7 पर हम में से हर एक को मसीह के दान के परिमाण से अनुग्रह मिला है।
8 इसलिये वह कहता है, कि वह ऊंचे पर चढ़ा, और बन्धुवाई को बान्ध ले गया, और मनुष्यों को दान दिए।
9 (उसके चढ़ने से, और क्या पाया जाता है केवल यह, कि वह पृथ्वी की निचली जगहों में उतरा भी था।
10 और जो उतर गया यह वही है जो सारे आकाश से ऊपर चढ़ भी गया, कि सब कुछ परिपूर्ण करे)।
11 और उस ने कितनों को भविष्यद्वक्ता नियुक्त करके, और कितनों को सुसमाचार सुनाने वाले नियुक्त करके, और कितनों को रखवाले और उपदेशक नियुक्त करके दे दिया।
12 जिस से पवित्र लोग सिद्ध हों जाएं, और सेवा का काम किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए।
13 जब तक कि हम सब के सब विश्वास, और परमेश्वर के पुत्र की पहिचान में एक न हो जाएं, और एक सिद्ध मनुष्य न बन जाएं और मसीह के पूरे डील डौल तक न बढ़ जाएं।
14 ताकि हम आगे को बालक न रहें, जो मनुष्यों की ठग-विद्या और चतुराई से उन के भ्रम की युक्तियों की, और उपदेश की, हर एक बयार से उछाले, और इधर-उधर घुमाए जाते हों।
15 वरन प्रेम में सच्चाई से चलते हुए, सब बातों में उस में जो सिर है, अर्थात मसीह में बढ़ते जाएं।
16 जिस से सारी देह हर एक जोड़ की सहायता से एक साथ मिलकर, और एक साथ गठकर उस प्रभाव के अनुसार जो हर एक भाग के परिमाण से उस में होता है, अपने आप को बढ़ाती है, कि वह प्रेम में उन्नति करती जाए॥
17 इसलिये मैं यह कहता हूं, और प्रभु में जताए देता हूं कि जैसे अन्यजातीय लोग अपने मन की अनर्थ की रीति पर चलते हैं, तुम अब से फिर ऐसे न चलो।
18 क्योंकि उनकी बुद्धि अन्धेरी हो गई है और उस अज्ञानता के कारण जो उन में है और उनके मन की कठोरता के कारण वे परमेश्वर के जीवन से अलग किए हुए हैं।
19 और वे सुन्न होकर, लुचपन में लग गए हैं, कि सब प्रकार के गन्दे काम लालसा से किया करें।
20 पर तुम ने मसीह की ऐसी शिक्षा नहीं पाई।
21 वरन तुम ने सचमुच उसी की सुनी, और जैसा यीशु में सत्य है, उसी में सिखाए भी गए।
22 कि तुम अगले चालचलन के पुराने मनुष्यत्व को जो भरमाने वाली अभिलाषाओं के अनुसार भ्रष्ट होता जाता है, उतार डालो।
23 और अपने मन के आत्मिक स्वभाव में नये बनते जाओ।
24 और नये मनुष्यत्व को पहिन लो, जो परमेश्वर के अनुसार सत्य की धामिर्कता, और पवित्रता में सृजा गया है॥
25 इस कारण झूठ बोलना छोड़कर हर एक अपने पड़ोसी से सच बोले, क्योंकि हम आपस में एक दूसरे के अंग हैं।
26 क्रोध तो करो, पर पाप मत करो: सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे।
27 और न शैतान को अवसर दो।
28 चोरी करनेवाला फिर चोरी न करे; वरन भले काम करने में अपने हाथों से परिश्रम करे; इसलिये कि जिसे प्रयोजन हो, उसे देने को उसके पास कुछ हो।
29 कोई गन्दी बात तुम्हारे मुंह से न निकले, पर आवश्यकता के अनुसार वही जो उन्नति के लिये उत्तम हो, ताकि उस से सुनने वालों पर अनुग्रह हो।
30 और परमेश्वर के पवित्र आत्मा को शोकित मत करो, जिस से तुम पर छुटकारे के दिन के लिये छाप दी गई है।
31 सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए।
32 और एक दूसरे पर कृपाल, और करूणामय हो, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो॥
इब्रानियों 3 : 12 – 13
12 हे भाइयो, चौकस रहो, कि तुम में ऐसा बुरा और अविश्वासी मन न हो, जो जीवते परमेश्वर से दूर हट जाए।
13 वरन जिस दिन तक आज का दिन कहा जाता है, हर दिन एक दूसरे को समझाते रहो, ऐसा न हो, कि तुम में से कोई जन पाप के छल में आकर कठोर हो जाए।
1 कुरिन्थियों 6 : 1 – 8
1 क्या तुम में से किसी को यह हियाव है, कि जब दूसरे के साथ झगड़ा हो, तो फैसले के लिये अधिमिर्यों के पास जाए; और पवित्र लागों के पास न जाए?
2 क्या तुम नहीं जानते, कि पवित्र लोग जगत का न्याय करेंगे? सो जब तुम्हें जगत का न्याय करना हे, तो क्या तुम छोटे से छोटे झगड़ों का भी निर्णय करने के योग्य नहीं?
3 क्या तुम नहीं जानते, कि हम स्वर्गदूतों का न्याय करेंगे? तो क्या सांसारिक बातों का निर्णय न करें?
4 सो यदि तुम्हें सांसारिक बातों का निर्णय करना हो, तो क्या उन्हीं को बैठाओगे जो कलीसिया में कुछ नहीं समझे जाते हैं
5 मैं तुम्हें लज्ज़ित करने के लिये यह कहता हूं: क्या सचमुच तुम में एक भी बुद्धिमान नहीं मिलता, जो अपने भाइयों का निर्णय कर सके?
6 वरन भाई भाई में मुकद्दमा होता है, और वह भी अविश्वासियों के साम्हने।
7 परन्तु सचमुच तुम में बड़ा दोष तो यह है, कि आपस में मुकद्दमा करते हो: वरन अन्याय क्यों नहीं सहते? अपनी हानि क्यों नहीं सहते?
8 वरन अन्याय करते और हानि पहुंचाते हो, और वह भी भाइयों को।
यहेजकेल 33 : 7
7 इसलिये, हे मनुष्य के सन्तान, मैं ने तुझे इस्राएल के घराने का पहरुआ ठहरा दिया है; तु मेरे मुंह से वचन सुन सुनकर उन्हें मेरी ओर से चिता दे।
1 कुरिन्थियों 6 : 1 – 20
1 क्या तुम में से किसी को यह हियाव है, कि जब दूसरे के साथ झगड़ा हो, तो फैसले के लिये अधिमिर्यों के पास जाए; और पवित्र लागों के पास न जाए?
2 क्या तुम नहीं जानते, कि पवित्र लोग जगत का न्याय करेंगे? सो जब तुम्हें जगत का न्याय करना हे, तो क्या तुम छोटे से छोटे झगड़ों का भी निर्णय करने के योग्य नहीं?
3 क्या तुम नहीं जानते, कि हम स्वर्गदूतों का न्याय करेंगे? तो क्या सांसारिक बातों का निर्णय न करें?
4 सो यदि तुम्हें सांसारिक बातों का निर्णय करना हो, तो क्या उन्हीं को बैठाओगे जो कलीसिया में कुछ नहीं समझे जाते हैं
5 मैं तुम्हें लज्ज़ित करने के लिये यह कहता हूं: क्या सचमुच तुम में एक भी बुद्धिमान नहीं मिलता, जो अपने भाइयों का निर्णय कर सके?
6 वरन भाई भाई में मुकद्दमा होता है, और वह भी अविश्वासियों के साम्हने।
7 परन्तु सचमुच तुम में बड़ा दोष तो यह है, कि आपस में मुकद्दमा करते हो: वरन अन्याय क्यों नहीं सहते? अपनी हानि क्यों नहीं सहते?
8 वरन अन्याय करते और हानि पहुंचाते हो, और वह भी भाइयों को।
9 क्या तुम नहीं जानते, कि अन्यायी लोग परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे? धोखा न खाओ, न वेश्यागामी, न मूर्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न लुच्चे, न पुरूषगामी।
10 न चोर, न लोभी, न पियक्कड़, न गाली देने वाले, न अन्धेर करने वाले परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे।
11 और तुम में से कितने ऐसे ही थे, परन्तु तुम प्रभु यीशु मसीह के नाम से और हमारे परमेश्वर के आत्मा से धोए गए, और पवित्र हुए और धर्मी ठहरे॥
12 सब वस्तुएं मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु सब वस्तुएं लाभ की नहीं, सब वस्तुएं मेरे लिये उचित हैं, परन्तु मैं किसी बात के आधीन न हूंगा।
13 भोजन पेट के लिये, और पेट भोजन के लिये है, परन्तु परमेश्वर इस को और उस को दोनों को नाश करेगा, परन्तु देह व्यभिचार के लिये नहीं, वरन प्रभु के लिये; और प्रभु देह के लिये है।
14 और परमेश्वर ने अपनी सामर्थ से प्रभु को जिलाया, और हमें भी जिलाएगा।
15 क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह मसीह के अंग हैं? सो क्या मैं मसीह के अंग लेकर उन्हें वेश्या के अंग बनाऊं? कदापि नहीं।
16 क्या तुम नहीं जानते, कि जो कोई वेश्या से संगति करता है, वह उसके साथ एक तन हो जाता है? क्योंकि वह कहता है, कि वे दोनों एक तन होंगे।
17 और जो प्रभु की संगति में रहता है, वह उसके साथ एक आत्मा हो जाता है।
18 व्यभिचार से बचे रहो: जितने और पाप मनुष्य करता है, वे देह के बाहर हैं, परन्तु व्यभिचार करने वाला अपनी ही देह के विरूद्ध पाप करता है।
19 क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह पवित्रात्मा का मन्दिर है; जो तुम में बसा हुआ है और तुम्हें परमेश्वर की ओर से मिला है, और तुम अपने नहीं हो?
20 क्योंकि दाम देकर मोल लिये गए हो, इसलिये अपनी देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो॥
1 कुरिन्थियों 5 : 1 – 13
1 यहां तक सुनने में आता है, कि तुम में व्यभिचार होता है, वरन ऐसा व्यभिचार जो अन्यजातियों में भी नहीं होता, कि एक मनुष्य अपने पिता की पत्नी को रखता है।
2 और तुम शोक तो नहीं करते, जिस से ऐसा काम करने वाला तुम्हारे बीच में से निकाला जाता, परन्तु घमण्ड करते हो।
3 मैं तो शरीर के भाव से दूर था, परन्तु आत्मा के भाव से तुम्हारे साथ होकर, मानो उपस्थिति की दशा में ऐसे काम करने वाले के विषय में यह आज्ञा दे चुका हूं।
4 कि जब तुम, और मेरी आत्मा, हमारे प्रभु यीशु की सामर्थ के साथ इकट्ठे हो, तो ऐसा मनुष्य, हमारे प्रभु यीशु के नाम से।
5 शरीर के विनाश के लिये शैतान को सौंपा जाए, ताकि उस की आत्मा प्रभु यीशु के दिन में उद्धार पाए।
6 तुम्हारा घमण्ड करना अच्छा नहीं; क्या तुम नहीं जानते, कि थोड़ा सा खमीर पूरे गूंधे हुए आटे को खमीर कर देता है।
7 पुराना खमीर निकाल कर, अपने आप को शुद्ध करो: कि नया गूंधा हुआ आटा बन जाओ; ताकि तुम अखमीरी हो, क्योंकि हमारा भी फसह जो मसीह है, बलिदान हुआ है।
8 सो आओ हम उत्सव में आनन्द मनावें, न तो पुराने खमीर से और न बुराई और दुष्टता के खमीर से, परन्तु सीधाई और सच्चाई की अखमीरी रोटी से॥
9 मैं ने अपनी पत्री में तुम्हें लिखा है, कि व्यभिचारियों की संगति न करना।
10 यह नहीं, कि तुम बिलकुल इस जगत के व्यभिचारियों, या लोभियों, या अन्धेर करने वालों, या मूर्तिपूजकों की संगति न करो; क्योंकि इस दशा में तो तुम्हें जगत में से निकल जाना ही पड़ता।
11 मेरा कहना यह है; कि यदि कोई भाई कहला कर, व्यभिचारी, या लोभी, या मूर्तिपूजक, या गाली देने वाला, या पियक्कड़, या अन्धेर करने वाला हो, तो उस की संगति मत करना; वरन ऐसे मनुष्य के साथ खाना भी न खाना।
12 क्योंकि मुझे बाहर वालों का न्याय करने से क्या काम? क्या तुम भीतर वालों का न्याय नहीं करते?
13 परन्तु बाहर वालों का न्याय परमेश्वर करता है: इसलिये उस कुकर्मी को अपने बीच में से निकाल दो॥
रोमियो 14 : 10
10 तू अपने भाई पर क्यों दोष लगाता है? या तू फिर क्यों अपने भाई को तुच्छ जानता है? हम सब के सब परमेश्वर के न्याय सिंहासन के साम्हने खड़े होंगे।
मत्ती 18 : 35
35 इसी प्रकार यदि तुम में से हर एक अपने भाई को मन से क्षमा न करेगा, तो मेरा पिता जो स्वर्ग में है, तुम से भी वैसा ही करेगा॥
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